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प्रिय भूख, तुम नहीं जीतोगी / दिनकर कुमार

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प्रिय भूख, तुम नहीं जीतोगी
तुम्हारी क्रूरता का
तुम्हारी सम्वेदन-शून्यता का
एक-एक वार व्यर्थ जाएगा
 
तुम्हारा घिनौना स्पर्श
छीन सकता है मेरे बच्चों के
होंठों की पवित्र हंसी
विषाद के विषैले धुएँ से
धुन्धली बना सकती हो
तुम हमें भींच सकती हो
कुपोषण के जबड़े में
घोल सकती हो
हमारी मीठी नीन्द में
तेज़ाब

प्रिय भूख !
तुम नहीं जीतोगी

हमेशा की तरह
तुम पराजित होगी
और शुरू होगा
अन्न का उत्सव