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प्रेम-पंथ पर अब मैं हारा / राहुल शिवाय

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प्रेम-पंथ पर अब मैं हारा।

मंजिल-पथ तय करते-करते
प्रेम दिवस के अस्ताचल पर,
उभरे पद-चिन्हों को हरपल
देख, ढूँढता एक सहारा।
प्रेम-पंथ पर अब मैं हारा।

जितने अश्क गिरे थे कल तक
उतना प्यार किया था उससे,
लेकिन अश्कों की आहुति को
ज्वाला ने कब है स्वीकारा।
प्रेम-पंथ पर अब मैं हारा।

प्रीति-पगी प्रतिमा पर पल-पल
पुष्प चढ़ाए, दीप जलाए,
शब्द न फूटे उस प्रतिमा से
गूँज उठा भूमंडल सारा।
प्रेम-पंथ पर अब मैं हारा।