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प्रेम / ज्योति शर्मा
Kavita Kosh से
वह जानती थी
प्रेम के लिए एक दिन चुनना होगा पुरुष
उसे ही सौंपनी होगी देह
तुम्हें जो दिखाई देती है स्त्री
केवल स्त्री नहीं
उसमें कहीं छुपा है एक पुरुष भी
उसे अपनी सखी के आसपास होने से
सुकून मिलता है
घंटों एक दूसरे के साथ बैठे अंतहीन बातें करना
एक दिन कृष्ण बनकर
उसने अपनी सखी से किया प्रेम
आलिंगन कर लिया पहला चुम्बन
नदियों के बीच की रिक्तता का विलाप
किसी को नहीं दिखाई देता न !