भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम / नवीन निकुंज
Kavita Kosh से
ताहरोॅ आँख
देखतें-देखतें
ई की होल्है
कि हठाते मुनी गेलोॅ छै
हमरोॅ दुन्हू आँख
आरोॅ खुली गेलोॅ छै-तेसरोॅ आँख
जेकरा में
हम्मी जली रहलोॅ छी
हम्मी कामदेव।