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प्रेम / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
बहुत दूर था चन्द्रमा
उसकी आभा थी
पास
एक हाथ था
मेरे हाथ में
धमनियों में बह
रही थी
पृथ्वी ।