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प्रेम / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
मैंने
गुलाब की
मौन शोभा को देखा !
उससे विनती की
तुम अपनी
अनिमेष सुषमा को
शुभ्र गहराइयों का रहस्य
मेरे मन की आँखों में
खोलो !
मैं अवाक् रह गया !
वह सजीव प्रेम था !
मैंने सूँघा,
वह उन्मुक्त प्रेम था !
मेरा हृदय
असीम माधुर्य से भर गया !
मैंने
गुलाब को
ओंठों से लगाया !
उसका सौकुमार्य
शुभ्र अशरीरी प्रेम था !
मैं गुलाब की
अक्षय शोभा को
निहारता रह गया !