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प्रेम और नमक / सांत्वना श्रीकांत
Kavita Kosh से
प्रेम और नमक
रूपक हैं
दोनो का उपयोग किया गया
ज़रूरत के हिसाब से
‘स्वादानुसार’
तेज नमक से छाले हुए
और कम नमक बेस्वाद लगा
जब रिस्ते में फफूँद लगने की
आशंका हुई तो
नमक बढ़ा दिया गया।
तृप्ति की अनुभूति पर
खारापन बहुत बढ़ गया है
मान कर
अवहेलित कर दिया गया..