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प्रेम का अनहद निनाद / गीता शर्मा बित्थारिया

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प्रेम का परावर्तन ही प्रेम है
प्रेम का प्रतिउत्तर भी बस प्रेम
प्रेम
जो सारे रंगों को तिरोहित कर
बन जाता है राधा सा श्वेताभ प्रेम
प्रेम जो त्याग सके
प्रेम के लिए
प्रेमी को भी

प्रेम
जो सारे रंगों को आत्मसात कर
बन जाता है कृष्ण सा नीलाभ प्रेम
प्रेम जो समेट ले हर रंग को
अपने ही रंग में
प्रेम के लिए
विलोपित विभेद
प्रेमी का भी

प्रकृति के
कण कण में
अंतर्निहित है प्रेम
जिसने जिस रंग का होना चाहा
उसने उसी रंग का सहज किया परावर्तन
प्रेम को ही परावर्तित करना होगा
प्रेमी होने को
पा जाना ही नहीं है प्रेम
छोड़ देना भी होता है प्रेम

प्रेम
जीवन का सत चित आनंद
पोर पोर बस जाएं प्रेम
हर श्वास हो चंदन सी महक उठे तन मन
प्रेम
प्रकृति का शाश्वत शिल्प
निमिष निमिष बस प्रेम
अनहद नाद निनाद से गूंजित अंतरतम
नभोनील से नीलग्रह तक विस्तृत
प्रेम के अजेय साम्राज्य का अलौकिक नीलाभ रंग