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प्रेम तुम्हारा वहन कर सकूँ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
Kavita Kosh से
वहन कर सकूँ प्रेम तुम्हारा
ऐसी सामर्थ्य नहीं।
इसीलिए इस संसार में
मेरे-तुम्हारे बीच
कृपाकर तुमने रखे नाथ
अनेक व्यवधान-
दुख-सुख के अनेक बंधन
धन-जन-मान।
ओट में रहकर क्षण-क्षण
झलक दिखाते ऐसे-
काले मेघों की फॉंको से
रवि मृदुरेखा जैसे।
शक्ति जिन्हें देते ढोने की
असीम प्रेम का भार
एक बार ही सारे परदे
देते हो उतार।
न रखते उन पर घर के बंधन
न रखते उनके धन
नि:शेष बनाकर पथ पर लाकर
करते उन्हें अकिंचन।
न व्यापता उन्हें मान-अपमान
लज्जा-शरम-भय।
अकेले तुम सब कुछ उनके
विश्व-भुवनमय।
इसी तरह आमने-सामने
सम्मुख तुम्हारा रहना,
केवल मात्र तुम्हीं में प्राण
परिपूर्ण कर रखना,
यह दया तुम्हारी पाई जिसने
उसका लोभ असीम
सकल लोभ वह दूर हटाता
देने को तुमको स्थान।