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प्रेम नगरिया बसा दिहल / सुभाष चंद "रसिया"
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बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल।
अब नेहिया से नेहिया मिला दिहल॥
बुलबुल गावे मोरनी नाचे दादुर ताल बजावे।
सात सुरो के सरगम से कोयल राग सुनाये।
नीले-नीले अम्बर से मोती के बरसा दिहल॥
बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल॥
हरियाली वन वैभव में गमके केसर क्यारी।
जन-जन में सद्भभाव भरल, लागे दुनिया न्यारी।
नेह निमंत्रण देके हमके "रसिया" जी भरमा दिहल॥
बिधना प्रेम नगरिया बसा दिहल॥