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प्रेम में पड़ी लड़की / आनंद गुप्ता
Kavita Kosh से
वह सारी रात आकाश बुहारती रही
उसका दुपट्टा तारों से भर गया
टेढ़े चाँद को तो उसने
अपने जूड़े मे खोंस लिया
खिलखिलाती हुई वह
रात भर हरसिंगार सी झरी
नदी के पास
वह नदी के साथ बहती रही
इच्छाओं के झरने तले
नहाती रही खूब-खूब
बादलों पर चढ़कर
वह काट आई आकाश के चक्कर
बारिश की बूँदों को तो सुंदर सपने की तरह
उसने अपनी आँखों में भर लिया
आईने में आज वह सबसे सुंदर दिखी
उसके हृदय के सारे बंद पन्ने खुलकर
सेमल के फाहे की तरह हवा में उड़ने लगे
रोटियाँ सेंकती हुई
कई बार जले उसके हाथ
उसने आज
आग से लड़ना सीख लिया।