रात के आख़िरी पहर में
एक औरत अकेली कमरे में बैठकर कुछ सोचती है
सफ़ेद लटों से घिरा अर्थपूर्ण है उसका चेहरा

एक मनुष्य रहता आया उसके अन्दर
उसी को प्रमाणित करने में ख़र्च हुई उम्र

अब अर्जित की है प्रेम करने की योग्यता
पर अवसर अब भी नदारद है

एक व्यंग्य है परिस्थिति में
उसी को बताती है उसकी पूरी आकृति।

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