भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम–राग-१ / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाने क्या तो है
तुम्हारी आँखों में
मन हो उठा है अवश
खूशबू एसी कि महक उठा है
तन उपवन
बंध जाना चाहता है मेरा
आजाद मन
कुछ तो है तुम्हारी आँखों में
की यह जानकर भी कि
गुरुत्वाकर्षण का नियम
चाँद पर काम नहीं करता
छू नहीं सकता आकाश
लाख ले उछालें
समुंद्र
अवश इच्छा से घिरा मन फिर
क्यों पाना-छूना चाहता है तुम्हें
असंभव का आकर्षण
पराकाष्ठा का बिंदु
कविता की आद्यभूमि