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प्रेयसी / श्वेता राय
Kavita Kosh से
जीवन में रसधार तुम्हीं से, तुम हो अमृत धारा।
सजल हृदय पर तेरे साथी!, अपना तन मन हारा॥
मेरे मधुमय जीवन की तुम, हो इक कविता प्यारी।
तनते तरु से मेरे मन पर, लिपटी लतिका न्यारी॥
तुम हो कुसुमित पुष्प प्रिये मैं, हूँ तेरा अनुरागी।
हृदय द्वार पर खिल तुम मेरे, बना रही बड़भागी॥
पायल की रुनझुन पर तेरे, न्यौछावर जग सारा।
सजल हृदय पर तेरे साथी, अपना तन मन हारा॥
मलयानिल अलकों पर ढ़ोती, पलकें मद से भारी।
नयनों के शीतल झरने में, खोई दुनिया सारी॥
बाँध लिया कुन्तल में अपने, मेघों का मँडराना।
कटि के बल पर भूलीं नदियाँ, अपना तो बलखाना॥
कंगन की खनखन पर तेरे, रचूँ छंद मैं प्यारा।
सजल हृदय पर तेरे साथी, अपना तन मन वारा।