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प्लास्टिक के फूल / शैलेन्द्र शर्मा
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देखभाल गमले-गमले की
करना किसे कबूल
इसीलिए घरों में सजते
अब प्लास्टिक के फूल
घर के व्यंजन रास न आते
विग्यापन का दौर
लगभग कथा यही घर-घर की
दिल्ली क्या बंगलौर
' फास्टफूड ' लगते हैं रुचिकर
चूल्हा फाँके धूल
आदर्शों की पगडण्डी पर
चलने की कोशिश
अपनी इस कोशिश को बचुआ
कहता ' ह्वाट रबिश '
' चार्वाक ' के सूत्र सत्य हैं
बाकी सभी फिजूल
स्वर्ग मिले अच्छा है लेकिन
धरणि नहीं खिसके
स्वार्थ छोड़कर भला ' देवता '
कहो हुए किसके
हुई त्रिशंकु आधुनिक पीढ़ी
रह-रह चुभता शूल