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प्लास्टिकी वक़्त में / रति सक्सेना
Kavita Kosh से
आज मैंने समेट लिए
वे तमाम पाए अनपाए खिलौने
और उन्हें बनाती कल्पनाएँ
कल्पनाओं से निकले बीज
बीज़ से अनफूटे कल्ले
यों भी
इस प्लास्टिकी वक़्त में
जगह भी कहाँ बची है
अवधूत से खिलंदड़ीपन के लिए