भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फगुनी अंजोरिया / सरयू सिंह 'सुन्दर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चम चम चमकेला फगुनी अँजोरिया हो, चमकेला अँगना दुआर।
गम-गम गमकेला आम के मोजरिया हो, गमकेला घर पिछुआर।।

रतिया सुहानी आइल, चारो ओर जवानी छाइल ;
सुधिया के पँखिया चढ़के, बतिया पुरानी आइल।
अइसन अँजोरिया त देखि-देखि गोरिया हो,
रोवत होइहें मनवाँ तोहार।। चमचम....

आँखिया में नीर होई, जियरा में पीर होई ;
केहू याद आवत होई, हियरा अधीर होई।
नयन कटोरवा के झरझर लोरवा के,
पोंछत होइबू अँचरा पसार। चमचम....

तन अकुलात होई, मन दुखलात होइ ;
एतना बहार बाकिर, कछु ना सुहात होई।
अइसन अँजोरिया त अगिया लगावत होई,
जरत होई एड़ी से कपार।। चमचम....

छाइल बहार होई, आइल लहार र्होइ ;
रसे-रसे धीरे-धीरे, डोलत बयार र्होइ ;
बोलत होई बगिया में कुहुकि कोइलिया हो,
काटत होई सोरहो सिंगार।। चमचम....

अब तू पराई भइलू, हमके भुलाई गइलू ;
दूसरा नगरिया धनिया-नेहिया लगाई गइलू।
अब ए जिनिगिया में तहरो सुरतिया हो,
लिखल नइखे हमरा लिलार।। चमचम....