भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फहरा दो पाल / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / प्रयाग शुक्ल
Kavita Kosh से
फहरा दो, फहरा दो, पाल
बन्धन सब खोल दो, खोल दो, खोल दो
फहरा दो, फहरा दो, पाल
उमड़ा है प्रेम-ज्वार
उस पर होकर सवार
जाएँगे कहीं अरे, पार
मुड़ना क्या, हटना क्या
फहरा दो, फहरा दो पाल
प्रबल पवन, उठ रही तरंगें
ले मन को कौन अब संभाल
भूलो अब दिग्विदिक्, मतवालो ओ, नाविक
फहरा दो, फहरा दो, पाल
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल