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फहराती रहे पताका / माधव शुक्ल

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हर हर कर भारत नभ पर, फहराती रहे पताका।
दुर्बल, खल-दल-बल मल कर, फहराती रहे पताका।।
स्वाधीन वायुमण्डल में, वीरों के वक्षस्थल में।
बल भरकर उनके बल पर, इठलाती रहे पताका।।
युवकों में जोश बढ़ाती, दुष्टों के दिल दहलाती,
भारत-यशगान सुनाती, लहराती रहे पताका।।
चालीस कोटि प्राणों से, स्वातन्त्र्य विजय गानों से,
लालों के बलिदानों से, भाती यह रहे पताका।।