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फ़क़त एक हलचल / उत्तमराव क्षीरसागर
Kavita Kosh से
बसेरा
फ़क़त एक हलचल
छोटे - छोटे रास्ते
दौड - दौडकर
पहुँच जाते हैं इधर - उधर
बहुत से क़दमों को
तय करनी हैं दूरियाँ
मरघट तक...
असंभव ।
बोरचिंदी के आते ही
याद आते हैं ज़रूरी काम
गौरैया चाहती है
लोगों के बीच जगह
कितनी पतली टहनी पर
लटका हुआ है
संसार
- 1998 ई0