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फ़ालतू देखना भी क्या / मनमोहन
Kavita Kosh से
त्वचा की तमाम देखभाल में
यह जाँचना शामिल नहीं किया गया
कि त्वचा में कितना स्पर्श बाक़ी है
यानी त्वचा की आँख
अब कुछ देखती नहीं
सिर्फ़ ख़ुद को दिखाती है
और सफ़ाचट रहने में गर्व महसूस करती है
अब तो आँखें ही कहाँ देखती हैं
नाचना तो ख़ूब सीख जाती हैं
लेकिन देखना भूलती जाती हैं
फ़ालतू देखना भी क्या
देखना, बस, इतना काफ़ी
कि अपना आहार दिखाई दे जाए