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फ़ासीवाद / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
उन्होंने सच लिखने वालों को गोली मार दी
उन्होंने खरा-खरा बोलने वालों की जीभें काट दीं
उन्होंने सही बातें सुनने के अभ्यस्त कानों में
पिघला सीसा डाल दिया
उन्होंने मनचाहा पहनने वालों के मुँह पर
तेज़ाब फेंक दिया
उन्होंने साहित्य का सिर क़लम कर दिया
उन्होंने तार्किकों को फाँसी दे दी
उन्होंने नापसंद इतिहास को छुरा घोंप दिया
उन्होंने संस्कृति का गला रेत दिया ...
जब वे यह सब कर रहे थे
तब आप क्या कर रहे थे
क्या आपने दूसरी ओर मुँह करके
अपनी आँखें मूँद लीं
या आप उठे
बंद मुट्ठी की तरह विरोध में
सोचिए