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फ़्रेम / उत्पल डेका / नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया
Kavita Kosh से
हर कोई वापस आता है
एक दिन ख़ुद के लिए
आसानी से भूल जाता है
अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई तस्वीरें
जीवन के प्रमुख समय में खो गए रिश्ते
बहुत से लोगों को नाराज़ न करें
अपने आप को पुनर्जीवित करें
किसी की आँख में
ज़िन्दगी की कहानी खो जाती है
क़िस्सों की भीड़ में
आसमान
बारिश
और सिगरेट के धुएँ की तरह
व्यथित संघर्षों से विकृत समय चित्र की तरह बोलता है
मूल असमिया भाषा से अनुवाद : नीरेन्द्र नाथ ठाकुरिया