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फागुन / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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काली रे कोइलिया कुहकै अमुआं डाली
कि याद आवै, परदेशी बालमुआं के याद आवै ।
कोइलिया निगोड़ी कुहुकै आधी रतिया
कि जान मारै, अधमरुओॅ विरहिनयाँ के जान मारै ।
यही फगुनमा में छेलै आवै रोॅ बतिया
कि नै ऐलै, हमरोॅ फाटै छै छतिया कि नै ऐलै ।
आबेॅ कुहुकोॅ नै कोइली शेष रतिया
कि आवी जैतै, परदेशी बलमुआ आवी जैतै ।
हुनका ऐला पर फूली जैतै छतिया
कि गीत गैवै, हुनका स्वागत में हम्में गीत गैवै ।