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फागुनी दोहे / अनूप अशेष
Kavita Kosh से
घेर रही है दिन उगे, अलसायी-सी बाँह।
जैसे आई धूप हो, गुलमोहर की छाँह।।
ओंठों लाली पान की, सांसों केसर रंग।
बेल पत्र पर हैं लिखे, भीतर के अनुबंध।।
पिया हाथ अंजुरी जुड़ी, ज्यों केवड़े का फूल।
भाग जुड़े दिन मोह के, पग पग महकी धूल।।
कनुप्रिया की गोद में, कालिंदी तट धूप।
सरसों मल कर आएगा, श्याम रंग में भूप।।
आने लगी मुंडेर पर, चिठ्ठी जैसी शाम।
पता डाकिया पूछता, लेकर अपना नाम।।