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फिर ऐसे मौसम आयें / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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चिड़ियाँ चहकें
तरु झुक जायें
फिर ऐसे मौसम आयें

उपवन-उपवन
फूल खिले हों
चंदन लिपटीं चलें हवायें
सूरज लिए
उजाला आये
ज्योति भरी हो सभी दिशायें

हिल मिल कर सब
बोझ उठायें
फिर ऐसे मौसम आयें

सुबह-सुबह ही
सारे बच्चे
अपने पाठों को दुहरायें
पर्वत वाली
नदी सयानी
लहर-लहर हँसती लहराये

सब जन मिलकर
हाथ बढ़ायें
फिर ऐसे मौसम आयें

सबके होठों
पर मुस्काने
बाढ़ नहीं हो और न सूखा
सभी सुकर्मों
के आदी हों
रहे न कोई प्यासा-भूखा

बडे प्यार से
गले लगायें
फिर ऐसे मौसम आयें