भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिर फाग फागुन के / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
फिर फाग फागुन के
फूल फूल छींटे
रंग रंग गाए
फिर पात यौवन से
डाल डाल ऐंठे
खुल बूर बौराए
चटके पलाश जंगल
सरसों बैठी बटने
ढलता सूरज
कटे पतंग ज्यों
शाम चली सी गौने