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फिर बोले सन्नाटे सूने / शीन काफ़ निज़ाम
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फिर बोले सन्नाटे तूने
शायद याद किया है तूने
फिर आँखों से नींद चुरा ली
कोरे कागज़ की खुशबू ने
देखा तो झाड़ी को देखा
कातर आँखों से आहू<ref>हिरण</ref> ने
रूप उकेरे कैसे-कैसे
मिल कर पुरवा से बालू ने
कैसे-कैसे नक़्श निकले
सहन-ए-खला<ref>शून्य का आँगन</ref> में सिर्फ़ लहू ने
कितने चेहरों की आवाजें
हम को सुनाई है धू-धू ने
बोलना चाहें बोल न पाए
जीभ को थाम लिया तालू ने
थोहर-थोहर उलझे दामन
याद के ज़ख्म हुए है दूने
फिर परदों की क्या पाबन्दी
सब कुछ लफ्ज़ लगे हैं छूने
फैल गया जो कुछ लिखा था
आँसू को समझा आँसू ने
शब्दार्थ
<references/>