भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर भी / रैनेर मरिया रिल्के

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुझा दो मेरी आँखों को
फिर भी
देख सकता हूँ मैं तुम्हें;

बन्द कर दो कानों को मेरे
फिर भी
सुन सकता हूँ मैं तुम्हें;

और आ सकता हूँ बिन पैर पास तुम्हारे
बिन मुँह भी पुकार सकता हूँ तुम्हें;

तोड़ दो बाँहें मेरी,
फिर भी
जकड़ लूँगा अपने दिल से मैं तुम्हें
जैसे पकड़ा हो एक हाथ से;

थाम लो दिल को मेरे
धड़केगा दिमाग़ मेरा;

लगा दो आग दिमाग़ में मेरे
फिर भी रखूँगा
अपने ख़ून में तुम्हें मैं ।।

मूल जर्मन से अनुवाद : प्रतिभा उपाध्याय