भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फिरि जा भरथ भवनवाँ हो / महेन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
फिरि जा भरथ भवनवाँ हो रामा मानो कहनवाँ।
हमरो करम में बन ही लिखी है छुटि गइले राजभवनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
सब मातुन की सेवा करना गहना ताहीं के चरनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
आवो गले लग जा मोरा भइया कब ले दू होइहें मिलनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।
द्विज महेन्द्र जिव मानत नाहीं देखहुँ के भइले सपनवाँ।
हो रामा मानो कहनवाँ।