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फिलहाल / शिवप्रसाद जोशी

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अमेरिका और मित्र देश जागें
ईरान और शत्रु देश जागें
मनमोहन सिंह और पी० चिदम्बरम जागें
मैं गुजरात में सो रहा हूँ

और देहरादून के अस्पताल में
उड़ीसा के जंगल में
कर्नाटक की बाढ़ में
और जर्मनी के बॉन शहर में
सँयुक्त राष्ट्र का दफ़्तर जागे
जागते रहें दुनिया के सारे ख़ुफिया कैमरे रात दिन

लादेन जागे तो जागे
सऊदी अरब का कोई शेख़ जागेगा ही
अधिकार हैं हम और चिंताएँ वंचितों की
हम सोएंगें कुछ देर

इस्राएल जगा है
ग़ज़ा के बच्चे सो रहे हैं
विमानों और बमों के शोर में
सफेद फोस्फोरस के धुएँ में
अख़बार जगे हैं
टी०वी० जगा है उत्तेजना और शोर के लिए
क्रिकेट को तो जागना ही है

मैं तो सोऊंगा अब
मेरा हेमोग्लोबिन बढ़ा है और गुस्सा
मुझे सोने दो

और जागने दो
सारकोज़ी को
मोदी को
आडवाणी को और जसवंत सिंह को
तालिबान को
और हाफ़िज़ सईद को जागने दो

मक़बूल फ़िदा हुसैन को सोने दो अपने घर में
लोहा ढालने वाले सलीम भाई को
पूजा से थके मांदे एक आदमी को
एज रिलेटड मैक्युलर डिजनेरेशन की विपत्ति पर आँखे झपकाते हुए सोने दो
पिता की ग़ैर मौजूदगी को न जगाओ बेटी की नींद में
माँ को सोने दो अपने लगाए फूलों और पौधों के साथ

और कृपया
लिथड़ी हुई झंझटों में और इन्तज़ार में मेरी मोहब्बत
न जगाए कोई

अब इस थकान को सोने दो
सोने दो कुछ देर रघुबीर सहाय को और मुक्तिबोध को और निराला को
कविता को दुनिया के गीतों को

नए सिरे से जगाएंगें हम
देवताओं को उनके पहाड़ी मांगल में
अभी सोने दो।