भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुदकू चिरैया का गीत / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
थैली पकड़ चोंच में
फुदकू जा पहुँची बाजार।
दो पैसे के आलू देना,
दो पैसे की भाजी।
सब्जी वाला बोला हँसकर-
‘ना जी, ना जी, ना जी।
दो पैसे में कुछ न आता,
रुपया दो इस बार।’
गुस्सा होकर फुदकू बोली-
‘दो पैसे क्या कम हैं?
ना जी, ना जी करते हो
क्या आती नहीं शरम है?
छोटी-मोटी बातों पर भी
करते हो तकरार।’
सब्जी वाले ने सोचा
अब बात न बनने वाली।
आलू-भाजी लिए बिना
न फुदकू टलने वाली।
बोला-‘ये लो बाबा,
माफ करो मेरी सरकार!