फूल एक फूलेला बलमजी के देसवाँ, सतगुरु दिहले लखाय हो।
नैन सनेहिया सोई फूल निरखत, मन मोरा रहले लोभाइ हो।
नयन कँवल जल तीनो सोहावन, भौंरा गुँजेला तेहि बीच हो।
वाके डार पात नहिं शाखा, नहिं कादो नहिं कीच हो।
एक दिन मन मोरा उलटि समाना, देखलौं पिया के अवेस हो।
झिलमिल ज्योति झलामल लौके, पावल वास विलास हो।
सुखमन घटिया के साँकर बटिया, हम धन अलप वयेस हे।
हमरो बलमुवाँ नयनवाँ के सागर, जहवाँ धइल मोरि बाँह हो।
घटिया ऊपर एक बंगला छववलो, सुन्दर सेज बिछाय हो।
‘शिवनारायन’ मंगल गावल, संतन लेहु विचार हो।