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फूल और शूल / शंभूनाथ शेष
Kavita Kosh से
एक दिन जो बाग में जाना हुआ,
दूर से ही महकती आई हवा!
खिल रहे थे फूल रँगा-रंग के-
केसरी थे और गुलाबी थे कहीं,
चंपई की बात कुछ पूछो नहीं!
खिल रहा था फूल एक गुलाब का,
देख जिसको मन बहुत ही खुश हुआ!
चाहती थी तोड़ लूँ उस फूल को,
पास ही देखा मगर इक शूल को!
फूल के है पास तीखा शूल क्यों?
हो गई ऐसी किसी से भूल क्यों!