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फूल का फूल-सा मासूम बदन जल जाए / के. पी. अनमोल

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फूल का फूल-सा मासूम बदन जल जाए
ऐसी नज़रों से न देखो कि चमन जल जाए

नींद दे जाए मुझे ख़्वाब तुम्हारे जैसा
जिसके बोसे से ये आँखों की चुभन जल जाए

दर्द के मारे क़दम तिलमिला के चीख पड़े
ये बदन तोड़ती मनहूस थकन जल जाए

कैसी हैरत, वो अगर मुड़ के नहीं देखे तो
मेरी ख़ामोश सदाओं का हिरन जल जाए

बादलो! माँग भरो तुम ज़मीं की पानी से
आसमां वरना कहीं ओढ़ अगन, जल जाए

कौन ये कह गया है तुमसे कहो ऐ लोगो!
नफ़रतें इस तरह उगलो कि वतन जल जाए

क्या ज़रूरी है कि अनमोल यहाँ हर कोई
इश्क़ में आग के दरिया को पहन जल जाए