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फूल की बातें सुनाकर वो गया / विनय मिश्र
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फूल की बातें सुनाकर वो गया ।
किस अदा से वक़्त काँटे बो गया ।
गाँव की ताज़ा हवा में था सफ़र,
शहर आते ही धुएँ में खो गया ।
मौत ने मुझको जगाया था मगर,
ज़िंदगी के फ़लसफ़ों में सो गया ।
मेरा अपना वो सुपरिचित रास्ता,
कुछ तो है जो अब तुम्हारा हो गया ।
पा गया ख़ुदगर्ज़ियों का राजपथ,
रास्ता जो भी सियासत को गया ।
सीख तेरी काम आ जाती मगर,
हाथ से निकला जो अवसर तो गया ।
कौन बतलाए हुआ उस पार क्या,
लौटकर आया नहीं है, जो गया ।