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फूल के अस्मिता बचावे के / मनोज भावुक
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फूल के अस्मिता बचावे के
काँट चारो तरफ उगावे के
ए जी ! बाटे बहार गुलशन में
आईं सहरा में गुल खिलावे के
ऊ जे तूफान के बुझा देवे
एगो अइसन दिया जरावे के
एह दशहरा में कवनो पुतला ना
मन के रावण के तन जरावे के
तय कइल ई बहुत जरूरी बा
माथ कहवां ले बा झुकावे के
आईं हियरा के झील में अपना
प्यार के इक कमल खिलावे के
काम अइसन करे के जवना से
पीठ पीछे भी मान पावे के
जिस्म जर जाई एक दिन 'भावुक'
रूह के रूह से मिलावे के