भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फूले-फले दिन / नईम
Kavita Kosh से
फूले-फले दिन-
झरबेरी से झर गए!
भेंट नहीं पाया, कर लेता मन का धन,
काँटों फँसता तो फँस जाता यह जन;
अच्छे भले दिन-
झरबेरी से झर गए।
पानी में दो पत्ते गीले पुरइन के,
गोते लहरें लेते कब वे गिन-गिन के?
प्यार में पले दिन-
झरबेरी से झर गए।
सोने से भरे रहे सुबहों के आँगन,
शामें डँस गईं किंतु जैसे हों नागिन;
विरासत मिले दिन-
झरबेरी-से झर गए।
झीलों में हंसों से उतरे धँसे हुए,
फूल प्यार के हाथों जूड़े में खुँसे हुए;
उजले धुले दिन-
झरबेरी-से झर गए।
फले-फले दिन-
झरबेरी-से झर गए।