फूलों का कारोबार / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी
माला में पिरोने के लिए ही खिले हुए हैं
कितने–कितने फूल!
क्या मालूम उसके बाद
मसला जायेगा हाथों से?
कुचला जायेगा पैरों से?
व्यर्थ
दूसरे की वासना के लिए
दूसरे के आनन्द के लिए
खिल जाते हैं
जाने कितने–कितने फूल!
खिलें
बेफिक्र होकर खिलें
हवा की परत–परत में मिलकर फैलें
बल्कि गिरें
अपने हिस्से का एक याम, एक चोला जीकर
और छितराए ज़मीन भर मृत्यु का रंग बिखेर कर
तब न फूल!
खिलने से पहले ही
पहुँच चुका होता है दुकानदार की टोकरी में
हवा का कोमल स्पर्श भी मिला नहीं
माली के वात्सल्य का गन्ध पहचाना नहीं
हवा के साथ बयार खेलने से पहले ही
धूप, चाँद और शीत से मिलने से पहले ही
बेचारे
किस रास्ता, कौन-सी गली, कौन-सा चौक लाँघ कर
कहाँ–कहाँ से पहुँचता है एक निर्दोष फूल
ख़रीदार के फूलदाने में
फूल
केवल मौन साक्षी हैं अपने ही दुर्दशा के
वे नहीं समझते
तोड़ा जाना, बेचा जाना या कहीं अर्पित किया जाना
मोक्ष है या दुर्गति?
वे नहीं समझते
कैसे सम्भव है बाज़ार में
फूलों की माँग और खपत का सिलसिला
जब
समझ जायेंगे ये सब प्रकरण
खिलेगा प्रत्येक फूल के पौधे में
बारुद!
और ख़त्म होगा दुनिया में
फूल का कारोबार
संकट में पड़ेंगे साहुकार
तनावग्रस्त होंगे दलाल
ख़ाली हाथ लौटेगा
समय का अन्तिम ग्राहक भी
उसके बाद
खिंचेगा दूकानदार शटर घर्रर्रर्र....
और फिर से किसी दिन न खोलने के लिए
मारेगा चाबी।