भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फेरु बयरिया डोले लागी / श्रद्धानन्द पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फेरु बयरिया डोले लागी !
फेरु भले अॅधियार गइल बा,
दुर्वह मन के भार भइल बा ;
जँहवाँ ले लउकत बाटे
करिया सगरे संसार भइल बा।
लाल किरिनिया झाँकी, कलिया-
फेरु नजरिया खोले लागी !
फेरु बयरिया डोले लागी !!

हर चेतन चुप-चाप भइल बा,
नीरवता के शाप भइल बा,
मन में कतनो पीर रहे,
ओठनि के खोलल पाप भइल बा।
फेरु चिरइया चहकी, भोरे-
फेरु कोयलिया बोले लागी !
फेरु बयरिया डोले लागी !!