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फेशबुक एक आत्मालोचना / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
अपना चेहरा उठाए
खड़े हैं हम बारहा
मुकाबिल आपके
अब आंखें हैं
पर दृष्टि नहीं है
मन हैं
पर उसकी उड़ान
की बोर्ड से कंपूटर स्क्रीन तक है
काम कम है हमारे पास
और उपलब्धियां हैं बेशुमार
जहालत और पीड़ा से भरे
इस जहान में
अपना चेहरा लिए
खड़े हैं हम
सबसे असंपृक्त
पहले आप
पहले आप की संस्क़ति
संभालते हुए