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फ्रेम मुक्त / इमरोज़ / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
रात सपने में इक सपना देखा
मोनालिसा जैसी खुबसूरत लड़की
इक फ्रेम में लगी दीवार पर टंगी
मेरी और देख -देख कर मुस्कुरा रही थी
जब मैंने उसे देखती को देखा वह भरी आँखों से
मुस्कुरा कर देखती हुई बोली
मैंने देख कर तुझे देख लिया हैं
तेरा ही इन्तजार था
अपना हाथ पकड़ा मैं फ्रेम मुक्त होना चाहती हूँ
तेरे हाथों में आकर फ़िक्र मुक्त भी
हमें फ्रेम मुक्त देख देखकर फ्रेम मुस्कुरा रहा था ..
और हम हँसते जा रहे थे...
फ्रेम पेटेंड तस्वीरों के लिए होते हैं
म्यूजियम में टांगने के लिए
और संस्कार चलती फिरती तस्वीरों के लिए होते हैं
समाज की दीवारों में टांगने के लिए...
मैं सुबह की चाय पी रहा था
कि उसका बड़ा खुश मैसेज मिला
कि वह फ्रेम मुक्त होकर आ रही है