Last modified on 27 दिसम्बर 2012, at 23:49

बंटवारा कर दो / महेश अनघ

बँटवारा कर दो ठाकुर ।

तन मालिक का
धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर ।

शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो पंडों को ।
खीर-खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर

सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास चपरासी के
उसमें पदक कुंअर जू के हैं
ख़ून पसीने घासी के
अजर-अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर

पँच बुला कर करो फ़ैसला
चौड़े-चौक उजाले में
त्याग-तपस्या इस पाले में
गजभीम उस पाले में
दीदे फाड़-फाड़ सब देखें
हम देखेंगे टुकुर-टुकुर