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बंदी / सूर्यदेव सिबोरत
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छूटकर
आ गया हूं मैं
मगर
छूट नहीं रही हैं
जेल की दीवारें
तुम्हारे इन्तज़ार की ।
क्योंकि
चप्पे चप्पे पर उनके
लिख दिया है
तुम्हारा नाम मैंने
खून-ए-जिगर से ।
मगर
मेरे
इन्तज़ार करने से पहले
बहुत पहले
तुम तो
हो चुकी
गैर की ।