भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बग़ीचा / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरी घास का,
बिछा गलीचा ।
सुन्दर-सुन्दर
सजा बग़ीचा ।

ठंडी-ठंडी
हवा चल रही,
फूलों पर
तितली मचल रही,

यहाँ बैठकर,
मन बहलाओ ।
जैसे पंछी,
गाते, गाओ ।