भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बगिया में आई बहार है / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
Kavita Kosh से
जग कर देखो लालन मेरे
बगिया में आई बहार है
झर झर झरता हर सिंगार है
शोभा इसकी तो अपार
पाँच पंखड़ी वाले फूल
श्वेत रंग के नन्हें फूल
लाल डंठलों वाले फूल
झर झर झरते नन्हें फूल
खिलते हैं ये रात को लेकिन
प्रात: ही झर जाते फूल
करते है प्रणाम सूरज को
धरती पर बिछ जाते फूल
चलो चलो बगिया में चलकर
देखो कितने सुन्दर फूल
चाहो तो अंजलि में लाकर
आँगन में बिखरा दो फूल