Last modified on 4 सितम्बर 2019, at 00:11

बचपन तो बचपन होता है / शैलेन्द्र सिंह दूहन

लिपटे माटी खेल खिलाए
लरजे डाली झूल झुलाए
पुरवा-पछवा की सर-सर में
लोरी का दर्शन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।
अक्कड़-बक्कड़ खेल-खिलोने
झूठे-मूठे सेज बिछोने,
गुड़ियों के शादी गोनों पे
गारे का उबटन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।
चिड़िया उड़ पे चट्टा-पट्टी
कच्ची-पक्की होना कट्टी
खो-खो कंचे गुल्ली-डंडा
मस्ती का उपवन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।
हँसते-हँसते आँसू भर कर
हाऊ वाले डर से डर कर,
माँ-बाबा की छाती से चिप
निर्भय नटखट तन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।
ऊँ-ऊँ कर के बात मनाना
कागज़ के वो यान उड़ाना,
पत्तों की फिरकी फिरकाता
निश्चल जीवन धन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।
खेतों में जा भर किलकारी
घोड़ा बनना बारी-बारी,
बासी खिचड़ी छीन-झपट खा
सचमुच पुलकित मन होता है।
बचपन तो बचपन होता है।