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बचो / प्रभात त्रिपाठी
Kavita Kosh से
विषधर चौक के
इस विकराल विस्तार को समझो
और बचो इस शहर से
यहाँ सारी सड़कें, अपने समूचे कोहराम
और चमचमाते ताम-झाम के साथ
दनदनाती घुस रही हैं तुम्हारे घरों में
तुम्हारे एकांत की चिंदियाँ बिखेरतीं
इन सड़कों की असलियत
सिर्फ़ ताक़त है
सिर्फ़ ताक़तवरों को एक दूसरे के निकट लातीं
इन सड़कों पर चलकर
कोई कभी नहीं पहुँचता अपने घर
अगर अपने घर जाना है
तो इन सड़कों से बचो