भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चा / केशव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चा
छत पर बैठा है
     रो रहा है

बच्चे की
किलकारियाँ आँगन में
       गूँज रही हैं
बच्चा
आरमान की ओर मुँह किये
       मुस्कुरा रहा है


बच्चे की दुनिया में
जिस तरह से चला जाता है कोई
उसी तरह लौट भी आता है
सचमुच
एक आत्मा है
बच्चा