भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बच्चा रोॅ खेल / शिवनारायण / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घक्कम धुक्की रेलम पेल
खेलेॅ, चूहा-बिल्ली खेल।

बिल्ली होय भालू गुरैलै
चन्दू-नन्दू दौड़ले ऐलै
ओकरा पीछू पिंकू-स्नेल
शुभमो ऐलै होय के रेल।

गंुजन चूहा रोॅ सरदार
सबकेॅ बोलै ऊ-‘होशियार’!
छोटी-कुन्नू बाहरे खेल
तभियो धरलोॅ गेलै नकेल।

चूहा ठो उत्पात, मचाबै
बिल्ली भी कम कहाँ बुझाबै
दोनों करै छै ठेलमठेल
सोनू-गुलशन देखै खेल।

कोमल-कंचन-सूरज-बिट्टू
खेल देखी केॅ सब्भे लट्टू
ऐलै उड्डन; गाड़ी ठेल।
खतम होलौ बच्चा रोॅ खेल।